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पर्यावरण और मीडिया

it's Sunil
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सारे टीवी चैनल्स अब केदारनाथ में हुए विनाश पर देश को उलझाने की कोशिश कर रहे है . क्या इन चंनेलो को ऐसी कोई वास्तव में चिंता है , ये तो बस अपनी तर्प बढ़ा रहे है. ( विनाश की तस्वीरो के बीच में आप विज्ञापनों में हसते मुस्कारते लोगो को देखते है).कुछ रिटायर्ड लोग जिन्होंने सरकारी नौकरी में पर्यावरण संबधित विभागों में महतवपूर्ण पदों का आनंद उठाया होगा अब विभिन्न चेनेलो पर ज्ञान बाँट रहे है. पर्यावरण की रक्षा करने के लिए जब कुछ कर सकते थे नहीं किया होगा , पोथिया पढ़ी होगी और हर महीने अपनी तनखा उठाई होगी, अपने पद का रौब झद होगा , अपने घर के पास वाले नाले की तरफ भी झांक कर नहीं देखा होगा .अब भी इनकी नजर पर्यावरण सुधरने पर नहीं है , नजर है उस लिफाफे पर जो प्रोग्राम के बाद मिलता है.

इसमें एक और मोहतरमा है जिन्होंने पेप्सी की बोतल से कीट नाशक का जिन्न निकाल था , वो तो ये एक अमेरिकन एम् एन सी के बारे में बोली थी तो हमारे राष्ट्रवादियो, वामपंथियों और समाजवादियो को गुदगुदी हुइ वर्ना तो बाजारों रेलवे स्टेशन आदि में मिलने वाल खाद्य पदार्थो में कीट नाशक नहीं आम आदमी कीटों को ही खाते है.

और अंत में वे लोग जो केदारनाथ गए थे कोई राष्ट्र सेवा या समाज सेवा करने तो गए नहीं थे अपने ही किसी स्वार्थ सिद्दी के लिए या मौज मस्ती के लिए गए होंगे .

इसलिए चिंता मत कीजिये और इस बहस में मत पडिये कि विनाश का दोषी कौन है, आराम से फिक्स्ड मैच में बी सी सी आई की टीम का रन चेस देखिये और बाद में लापता गंज का लुत्फ़ उठाइए

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