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16 दिसम्बर को हमें राष्ट्रीय शर्म दिवस के रूप में हर साल लेना चाहिए और सरे राष्ट्र को दो मिनिट शर्म से सर झुका कर आत्मावलोकन करना चाहिए की आजादी के 65 साल बाद हमने ये कैसे समाज की रचना की है .
हमे शर्मसार किया उन 50 ऑटो ड्राइवर्स ने जिन्होंने देश की अमानत को साकेत मॉल से उनके गन्तव्य तक लेजाने से इंकार किया जबकि उनको लाइसेंस ही इस काम के लिए दिया जाता है।
हमे शर्मसार किया उन लोगो ने जिन्होंने देश की अमानत की बस में से चीख की आवाजे अनसुनी कर दी।
हमें शर्मसार किया उन मोटरसाइकिल सवारों ने जिन्होंने घायल अमानत के दोस्त की गुहार को अनदेखा किया और आगे निकल गए।
हमे शर्मसार किया उन लोगो ने जो घायल अमानत को तमाशबीन कि तरह देखते रहे।
हम शर्म सर किया पीसीआर चालको ने जिन्होंने अमानत को चिकित्सालय पहुचने में विलम्ब किया। ( दिल्ली पुलिस चाहे कोई सफाई दे )
हमे शर्मसार किया उन चिकित्सा कर्मचारियों ने जिन्होंने अमानत के दोस्त को जो लगभग निर्वस्त्र था शशीर ढकने के लिए चादर तक नहीं दी।
हमे शर्मसार किया कुछ राजनीतिज्ञों ने उल जूलूल बयान देकर।
हमे शर्म सर किया उस न्यायिक अधिकारी ने जिसने दोबारा घायल अमानत का बयान लिया ( इसमें दिल्ली की मुख्या मंत्री का भी ही हाथ है )
दिल्ली पुलिस के बारे में क्या लिखे
और ये कहानी दिल्ली की ही नहीं है , हर गाँव हर शहर में ये हो रहा है।
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