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it's Sunil
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अब वह समय आ गया है जब लोग मनमोहन सरकार का मर्सिहा पड़ने लगे है. डा. मनमोहन सिंह की कहानी उस कहावत को चरितार्थ करती है जिसमे कव्वा जब हंस की चाल चलने की कोशिश करता है तो अपनी भी चल भूल जाता है. वे एक बेहतरीन अर्थाशाष्ट्री थे तथा प्रधान मंत्री बनाने से पहले तक उन्हें उन्हें आर्थिक सुधारो के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता था , किस तरह उन्होंने नार्सिम्भाराव सरकार के वित्त मंत्री की हैसियत से देश को एक आर्थिक संकट से निकाला था. ये नर्सिम्भा राव की नेतृत्व व् मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों का ही असर है आज भारत एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है तथा लोगो के जीवन स्तर में सुधर आया है.

पर शायद मनमोहन सिंह एक नौकरी पेश आदमी थे उन्होंने एक स्वतंत्र वित्त मंत्री के स्तःन पर प्रधान मंत्री की नौकरी कर ली. और उनकी बोंस एक अनपढ़ विदेश महिला जिन्हें हम कांग्रेस अध्यक्ष के नाम से जानते है.

अब तो सरदारजी का सफ़ेद कुरता भी इतना दागदार हो गया है कि शायद उन्हें खुद अपने आप से खीज होने लगी होगी. ये किसी भी इन्सान कि कल्पना के परे है कि उनकी क्या मजबूरी है. वे खुद ही इसे अपनी जीवनी लिख कर बयां कर सकते है और अब वह समय आ गया है जब वे ये काम शुरू कर दे. पर अभी शायद दुसरे सिख राष्ट्रपति बनने कि खवहिश अभी उन में बाकी है. और इस के लिए मुलायम सिंग यादव के सामने गाजर डाली जा रही है.

ये देखना अभी बाकी है कि इस मुलायम सिंह अपने प्रधान मंत्री बनने के सपने के स्थान पर ये आसान रहा चुनते है. पर इस स्तिथि में के ये उस अपर जन समर्थन का जो उत्तर प्रदेश के लोगो ने उन्हें दिया है उसका अपमान नहीं होगा.

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