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लगभग इसी समय राष्ट्रमंडल खेलो का समापन कार्यक्रम चल रहा है. ये खेल मोटे तौर से देखे जाये तो बहुत ही सफल रहे या यो कहे की इनके आयोजक तथा सरकार येही कहेगी बहुत ही भव्य आयोजन रहा तथा इन खेलो में भारतीयों के प्रदर्शन ने देश का नाम उचा किया है. पर कुछ बुनियादी सवालो का जवाब तो दूधना ही पड़ेगा.
सबसे पहले तो ये की इन खेलो के आयोजन की क्या आवश्कता थी. अस्सी हजार करोड़ रुपयों के खर्च कर खेल करवाना . इस देश की गरीब जनता तथा अमीरों के टैक्स से खेल और संगीत के कायक्रम से किसका भला भला हो सकता है . इस धन से लगभग बीस हजार मेघा वाट के बिजली संयंत्र लगाये जा सकते थे. अस्सी हजार प्राथमिक विधालय खोले जा सकते थे .इसे आप मेरी नकरात्मक सोच कह सकते है पर यदि ऐसा होता तो आप सोचिये हमारीगरीब जनता को रोज रोज के पावर कट से छुटकारा मिल जाता छोटे बच्चो को बड़ा होने का मोका मिलाता और हम चंद सोने के तमगो से खुश नहीं होते i वेसे भी जिन्हें भी मिले है वह उनकी कड़ी औए लम्बी मेहनत का फल शनिक फलही उसके बाद तो उन्हें ऑटो में बैठ कर घर जाना है कौन उन्हें पूछेगा . वेसे भी सोने के तमगे से आम आदमी को क्या लेना.
दूसरा अहम् सवाल ये है कि इतना अधिक खर्च कैसे हुआ तथा जो कलमाड़ी ने पैसा अपने भाई भतीजो कि तरफ डायवर्ट किया है क्या जनता उसका भूल जायेगी ? नहीं आज ऐसा नहीं होगा अस्सी हजार करोड़ में ये तमाशा कभी भी बर्दाश्त नहीं होगा , और यदि जनता भूल भी गयी तो भी मिडिया कलमाड़ी के पीछे लगा रहेगा .ये क्रिकेट का २० -२० आ पि नहीं है जिस में जनता का पैसा नहीं. ये तो भारत का पैसा है और इसका जवाब तो देना ही होगा
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